शनिवार, 23 जुलाई 2011

त्रैमासिक 'संबोधन'-अप्रैल-जून २०११

पत्रिका -            संबोधन
अंक -              अप्रैल-जून  2011
स्वरूप -            त्रैमासिक
संपादक -          क़मर मेवाडी
मूल्य -             (२०रू प्रति, तीन वर्ष के लिए २५०/-)
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संबोधन के इस अंक में विशिष्ट कवि चन्द्र प्रकाश देवल की सात कवितायें प्रकाशित की गई हैं| सभी कवितायें अलग अलग विषयों पर कवि की परख को बखूबी उजागर करती हैं| 

विष्णु चन्द्र शर्मा का लेख आप जो कहिये वह बाज़ार से ला देता हूँ मैं समकालीन साहित्य पर हावी होते बाजारवाद को ही परिभाषित करता है| एक पठनीय लेख|

महावीर रवाल्टा से विद्यासागर नौटियाल की बातचीत में कई रोचक सवाल जवाब सामने आते हैं| और महावीर जी ने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया है|

राम निहाल गुंजन का आलेख नन्द चतुर्वेदी की काव्य दृष्टि और विचार नन्द चतुर्वेदी के साहित्य को और उनके व्यक्तित्व को समझाने में सफल रहा है|

सुशांत सुप्रिय की सात कवितायें बदलते मूल्यों और सामजिक ढांचे में हो रहे बदलाव की ही व्याख्या करती हैं| सभी कवितायें अच्छी हैं|


विनीता जोशी, मीरा पुरवार, और नीना जैन की भी कवितायें प्रभावित करती हैं|

हबीब कैफी की कहानी ढाणी में प्रकाश आज भी जीवित भारतीय संस्कृति और व्यक्तित्व की मिसाल कायम करती है| शुरू से लेकर अंत तक पाठक को बांधे रखने में सक्षम है| रवि बुले ने कहानी की बहुत सुन्दर समीक्षा भी की है|

ग़ज़लों में मुनव्वर अली ताज, रामकुमार सिंह, नलिनी विभा 'नाज़ली' और सुरेश उजाला की गज़लें शामिल हैं| समकालीन ग़ज़लों की तरह इनके भी विषय रवायती ग़ज़लों से इतर हैं| शिल्प की कुछ खामियों को छोड़ दें तो सभी गज़लें सुन्दर हैं|

वेद व्यास का लेख राजस्थान में २०१० का साहित्य राजस्थान में साहित्य में हो रही गतिविधियों की जांच पड़ताल करता है

इनके अतिरिक्त समीक्षा, संस्मरण और पत्र भी प्रकाशित किये गए हैं|

1 टिप्पणी:

  1. एक दौर था, गांव-गांव में खूब जमती थीं चौपाल
    मिल जुलकर सब बैठा करते और बांटते अपना हाल
    हम किस्मत के मारे देखो, शहर भाग कर आ गए
    दो पैसे की खातिर संस्कृति मेल जोल की,खा गए
    लेकिन खुश हूं फेसबुक पर सजी नयी चौपाल है
    खुब जमेगी अब हम सबमें, ऐसा मेरा खयाल है
    पर दुश्वारी एक यहां कि, भाषा लगड़ी हो जाती है
    हिन्दी की ऐसी तैसी,इंगलिश तगड़ी हो जाती है
    फ्रैण्ड बनो, और चैट करो, तौबा धंधे-काम से
    एक बार बस आ तो जाओ, सब जानेंगे नाम से
    लेकिन एक निवेदन बन्धु, प्रीतम करता है करजोड़
    इस चौपाल पर आ गए तो, कभी न जाना हमको छोड़।
    कुंवर प्रीतम

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