शनिवार, 23 जुलाई 2011

त्रैमासिक 'संबोधन'-अप्रैल-जून २०११

पत्रिका -            संबोधन
अंक -              अप्रैल-जून  2011
स्वरूप -            त्रैमासिक
संपादक -          क़मर मेवाडी
मूल्य -             (२०रू प्रति, तीन वर्ष के लिए २५०/-)
फोन/मोबाईल:    ०२९५२-२२३२२१, ९८२९१६१३४२
ई मेल -            qamar.mewari@rediffmail.com
वेबसाईट           
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पत्राचार :         
पोस्ट-कांकरोली-३१३३२४ जिला-राजसमन्द, राजस्थान



संबोधन के इस अंक में विशिष्ट कवि चन्द्र प्रकाश देवल की सात कवितायें प्रकाशित की गई हैं| सभी कवितायें अलग अलग विषयों पर कवि की परख को बखूबी उजागर करती हैं| 

विष्णु चन्द्र शर्मा का लेख आप जो कहिये वह बाज़ार से ला देता हूँ मैं समकालीन साहित्य पर हावी होते बाजारवाद को ही परिभाषित करता है| एक पठनीय लेख|

महावीर रवाल्टा से विद्यासागर नौटियाल की बातचीत में कई रोचक सवाल जवाब सामने आते हैं| और महावीर जी ने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया है|

राम निहाल गुंजन का आलेख नन्द चतुर्वेदी की काव्य दृष्टि और विचार नन्द चतुर्वेदी के साहित्य को और उनके व्यक्तित्व को समझाने में सफल रहा है|

सुशांत सुप्रिय की सात कवितायें बदलते मूल्यों और सामजिक ढांचे में हो रहे बदलाव की ही व्याख्या करती हैं| सभी कवितायें अच्छी हैं|


विनीता जोशी, मीरा पुरवार, और नीना जैन की भी कवितायें प्रभावित करती हैं|

हबीब कैफी की कहानी ढाणी में प्रकाश आज भी जीवित भारतीय संस्कृति और व्यक्तित्व की मिसाल कायम करती है| शुरू से लेकर अंत तक पाठक को बांधे रखने में सक्षम है| रवि बुले ने कहानी की बहुत सुन्दर समीक्षा भी की है|

ग़ज़लों में मुनव्वर अली ताज, रामकुमार सिंह, नलिनी विभा 'नाज़ली' और सुरेश उजाला की गज़लें शामिल हैं| समकालीन ग़ज़लों की तरह इनके भी विषय रवायती ग़ज़लों से इतर हैं| शिल्प की कुछ खामियों को छोड़ दें तो सभी गज़लें सुन्दर हैं|

वेद व्यास का लेख राजस्थान में २०१० का साहित्य राजस्थान में साहित्य में हो रही गतिविधियों की जांच पड़ताल करता है

इनके अतिरिक्त समीक्षा, संस्मरण और पत्र भी प्रकाशित किये गए हैं|

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

साहित्य का संगम : दिव्यालोक अंक १५

पत्रिका -            दिव्यालोक
अंक -               2011
स्वरूप -             अर्ध वार्षिक
संपादक -          जगदीश किंजल्क
मूल्य -             (60 रू प्रति)
फोन/मोबाईल:    09977782777, 0755-2494777
ई मेल -            jadgishkinjalk@gmail.com
वेबसाईट           
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पत्राचार :          
साहित्य सदन, प्लाट नंबर - 145 A सांई नाथ नगर, सी सेक्टर, कोलार             भोपाल - 462042





जगदीश किंजल्क ने सम्पादकीय में साहित्य, साहित्यकार व समाज की वर्तमान स्थिति पर विचार किया है आप लिखते हैं - 


कुछ राज्य सरकारों द्वारा साहित्यिक पत्रिकाएँ क्रय की जाती थी, सरकार को लगा यह फिजूल खर्ची है तुरंत बंद होना चाहिए... और बंद हो गयी| पक्ष विपक्ष ने सर्व सम्मति से इस निर्णय का स्वागत किया ...


लेख खंड में 'कौन कौन ग्रन्थ पढ़े होंगे तुलसीदास ने' (अम्बिका प्रसाद दिव्य) विशेष पठनीय, ज्ञान परक व विचार परक है


गीत खंड में शिवानंद सिंह 'सहयोगी', विजय लक्ष्मी 'विभा'चंद्रसेन 'विराट'  के गीत विशेष प्रभावशाली हैं विराट जी ने अपने गीत को किस मोहक ढंग से अलंकृत किया है -


मैं अपने मैं का दास रहा 
वह खुश तो मैं खुश 
उसके दुःख से मैं दुखी, उदास रहा 
वह दम्भी अभिमानी अशिष्ट 
अकरुण कठोरता का विग्रह 
मैं अति विनम्र, आज्ञाकारी 
अति सदाशयी सेवक निस्पृह 
वह तो अघोर अति शासक अति 
अनूदित अविरल अनुप्रास रहा |


 कहानी खंड में तीन कहानियों 'मोहजाल' (प्रतिभा जौहरी), 'आस्था' (सतीश दूबे), 'बीतता पल' (राधे मोहन राय) में मानव मन की उलझनों को बखूबी सुलझाने का प्रयत्न किया गया है, कुछ जगह सुलझी भी है और कुछ उलझन और उलझने को आतुर दिखीं 'मोह जाल' का प्लाट थोडा पुराना है परन्तु कहानीकार ने कहानी को अच्छे से निभा लिया है 


नवगीत खंड में काफी कुछ नयापन है मगर साथ साथ एक कच्चापन भी साथ साथ चलता रहा, आशा है आगे चल कर यह खंड और सार्थकता लिए हुए होगा 


व्यंग्य खंड अपनी सार्थकता का सुरुचिपूर्ण बोध करवाता है, अजय चतुर्वेदी 'कक्का', अजीत श्रीवास्तव, राधे मोहन राय के व्यंग्य लेख प्रभावशाली हैं 


ग़ज़ल खंड में महेश अग्रवाल, डा.दरवेश भारती, विजयलक्ष्मी 'विभा' की ग़ज़लें मन को प्रमुदित करती हैं 


खाब अपने कांच के घर हो गए |
और उनके फूल पत्थर हो गए |

हम नदी की फ़िक्र में बैठे रहे, 
लोग पल भर में समंदर हो गए |

- महेश अग्रवाल  


कुछ ग़ज़लें लय से भटक रही हैं सम्पादक दल को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए 


अशोक गुजराती की लघु कथा 'चित-पट' स्तरीय है 


समीक्षा खंड भी पत्रिका के साहित्य को स्तरीयता प्रदान करता है व पत्रिका को समृद्ध करता है


पत्रिका पठनीय है व् अनेक विधाओं को समेटे हुए है 


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'समीक्षा ब्लॉग समूह' के पाठकों के लिए दिव्यालोक पत्रिका की सदस्यता की राशि में १० प्रतिशत की विशेष छूट मिलेगी व् उपहार स्वरूप २०० रु मूल्य की साहित्यिक पुस्तकें उपहार स्वरूप दी जायेगी
(छूट व उपहार पाने के लिए पत्रिका के सम्पादकीय विभाग से संपर्क करें व समीक्षा ब्लॉग समूह का उल्लेख जरूर करें)
- जगदीश किंजल्क
संपादक : दिव्यालोक

बुधवार, 15 जून 2011

त्रैमासिक 'गुफ्तगू' :- जून २०११

अंक -              अप्रैल-जून 2011
स्वरूप -            त्रैमासिक
संपादक -          नाजिया गाजी
मूल्य -             (10 रू प्रति) (वार्षिक 40 रू.)(आजीवन-1500 रु.)
फोन/मोबाईल:    ९८८९३१६७९०,९८३९९४२००५
ई मेल -            guftgu007@rediffmail.com
वेबसाईट          
http://guftgu-allahabad.blogspot.com
पत्राचार :         
१२३ ए /१, हर्वारा, धूमनगंज, इलाहाबाद-२११०११


ग़ज़ल विधा को समर्पित पत्रिकाओं में 'गुफ़्तगू' त्रैमासिक पत्रिका का अच्छा स्थान है

सम्पादकीय
सम्पादकीय में नाजिया गाजी ने कवि सम्मेलनों के मंचों पर दिनों दिन हास्य कलाकारों की मौजूदगी और बढती फूहडता पर प्रश्न उठाया है| लेख में पूरी तरह से ठीकरा कवियों/शायरों पर मढने की बजाय इस पर और भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता थी|

गज़लें  

खास ग़ज़लें स्तंभ में अकबर इलाहाबादी, फ़िराक गोरखपुरी, मज़रूह सुल्तानपुरी और दुष्यंत कुमार की गज़लें हैं| निश्चय ही चरों गज़लें बेहतरीन हैं और पठनीय हैं| बड़े शायरों की ग़ज़लों के प्रकाशन में प्रूफ रीडिंग का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ऐसा लगता है कहीं कहीं गलतियां छूट गई हैं|


अगली गज़ल मुनव्वर राना साहब की है जिनका नाम ही काफी है ..एक शेर देखिये 

हमको मालूम है शोहरत की बुलंदी हमने,
कब्र की मिटटी को देखा है बराबर होना 

इब्राहिम अश्क की गज़ल में बेशक अरूज़ की दृष्टि से कई खामियां है परन्तु उत्तम कथ्य के कारण अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है| 

अतीक इलाहाबादी की गज़ल शिल्प और कथ्य दोनों पर खरी उतरती हुई आज के दौर की नब्ज़ पकडती हुई दिखती है..एक शेर देखिये 
यारों ने साथ छोड के रस्ते बदल लिए
जब पास अपने एक भी पैसा नहीं रहा

मनोहर विजय की गज़ल भी बेहतरीन है, एक शेर देखिये
खोटे सिक्के को हिकारत से न देखो यारों
खोटा सिका ही सही काम भी आ जाता है 

वाकिफ  अन्सारी की गज़ल का शेर देखिये


उसकी नज़रों से यूँ टकरा गयीं नज़रें मेरी
जैसे 'वाकिफ' कोई तलवार पे तलवार गिरे


आचार्य भगवत दुबे, डा० लोक सेतिया, वृन्दावन राय सरल, डा० दरवेश भारती, केशव शरण. डा० ऋषिपाल धीमान, ए० एफ़० नज़र, देवेश देव, अजय अज्ञात, नरेश निसार, शम्मी शम्स वारसी, किशन स्वरुप, सजीवन मयंक, इरशाद अहमद, शिबली सना, सहर बहेडवी, हुमा अक्सीर, सिबतैन परवाना, डा० वारिस अंसारी और अखिलेश निगम अखिल की गज़लें भी इस अंक की शोभा बढ़ा रही हैं|


कवितायें

कैलाश गौतम का नवगीत "मन का वृन्दावन होना" एक उत्कृष्ट नवगीत का उदाहरण है|


अवनीश सिंह चौहान का नवगीत भी मानकों पर खरा उतरता है|


दोनों नवगीतों को मुखड़े और अंतरे में ना बांटने के कारण पढने में कठिनाई होती है| इस विषय पर सम्पादकीय दृष्टि की आवश्यकता है|

जाल अंसारी कि कविता "चाँद सा चेहरा" नए बिम्बों से सुसज्जित है और मन के अंदर गहरे तक उतरती है|



इसके अतिरिक्त रुबीना, जसप्रीत कौर जस्सी, अंजलि राना, विमल कुमार वर्मा और आकांक्षा यादव की कविताय्रें भी हैं|


तआरुफ़ 
डा० अलका प्रकाश की तीन कवितायें हैं| तीनों कवितायें स्त्री के अंतर्मन की व्यथा का सीधा सीधा रूपान्तर हैं बस केवल समय और किरदार बदल दिए गए हैं दीगर बात यह है कि कवियित्री इस कार्य में पूरी तरह सफल है| 


इंटरव्यू
एहतराम इस्लाम से जयकृष्ण राय तुषार की बातचीत में हिंदी-उर्दू  और आज की गज़ल पर एहतराम साहब ने बेबाकी से जवाब दिया है| एक पठनीय साक्षात्कार|


विशेष लेख
मुनव्वर राना का विशेष लेख "हम अपने गाँव की गलियों में सावन छोड़ आये हैं" मूलतः एक भावनात्मक लेख है और पढ़ने के बाद सुकून देने वाला है|


चौपाल
इस बार का विषय है "साहित्यिक पुस्तकों का मूल्य इतना अधिक क्यों", जिसमे बेकल उत्साही, वसीम बरेलवी, बुद्धिनाथ मिश्र, अनवर जलालपुरी और नवाब शाहाबादी के रोचक जवाब शामिल हैं|

कहानी


हेमला श्रीवास्तव की कहानी "खामोश रिश्ता" एक परिवार के बिखराव की कहानी है जिसमे एक नीम के पेड़ को गवाह बनाया गया है| काहानी शिल्प के पहलू में थोड़ी कसावट की मांग करती है| भविष्य में लेखिका से और भी अच्छी कहानियों की उम्मीद है|

परिशिष्ट


डा० कृष्ण भूषण श्रीवास्तव और डा० सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव की प्रतिनिधि कवितायें हैं|


इन सबके अतिरिक्त डा० ज़मीर अहसन की तीन गज़लो को भी स्थान दिया गया है| तीनो गज़लें रिवायती ग़ज़लों का एक शानदार नमूना है|

गुरुवार, 2 जून 2011

समीक्षा - पाखी, मई २०११

अंक -              मई 2011
स्वरूप -            मासिक
संपादक -          प्रेम भारद्वाज
मूल्य -             (20 रू प्रति) (वार्षिक 240 रू.)
फोन/मोबाईल:    0120- 4070300, 4070398
ई मेल -            pakhi@pakhi.in
वेबसाईट           http://www.pakhi.in
पत्राचार :          
इंडिपेडेंट मीडिया इनिशियेटिव सोसायटी, बी 107, सेक्टर 63, नोएड़ा,
 201303 उ.प्र.


प्रतिष्ठित पत्रिका 'पाखी' का यह विशेषांक विविध रचनाओं तथा अन्य रोचक स्तंभों  सुसज्जित है 


पाँच कहानियाँ 
कोसे का साफा, दुधारी छूरी (अब्दुल बिस्मिल्ल्ह) कहानी व्यूह रचना करते हुए आगे बढती है और कुछ यक्ष प्रश्नों के साथ समाप्त होती है, लेखक कि अपनी शैली है जो काबिले तारीफ़ भी है और यह आशा भी की जा सकती है कि भविष्य में इसमें और निखार आएगा| 
पाँव में पहिये वाली लड़की (संतोष दीक्षित) कहानी में विषय का बखूबी निर्वहन किया गया है, लेखक बधाई का पात्र है| कहानी, मुख्य पात्र पुनिया की है जो पुनिया से पूर्णिमा बनने की जद्दोजहद में सामाजिक संघर्ष को एक विराम दिला देती है| पूर्णिमा बनने का सफर शुरू हो चुका है, एक अंश देखें -
                                      "जितनी मुँह उतनी बातें। लड़के पफब्तियां कसते। अंड बंड बकते। लेकिन कोई पफर्क नहीं पड़ता पुनिया को। चाय दुकान का उसका अनुभव इस बुरे वक्त में उसके खूब काम आता। वह अपना काम निबटाती और पिफर अपनी किताबों में खो जाती। वैसे भी इन सड़क छाप मजनुओं के साथ न उसका कोई भविष्य था न ही उसका कोई सपना इनके भविष्य के साथ मेल खाता था। जो वह आगे बढ़ती  ही... लगातार... अपनी सायकिल की रफ्तार से..."
कहानी अवश्य पढ़े|
'वह चेहरा' (रूप सिंह चंदेल) जिंदगी के पासे में हमेशा ६ लाने की जुगत करने वालों को १ और २ का महत्त्व भी मालूम होना चाहिए, अपनी जीवन उपलब्धि को एक खास इंसान  से साझा करने की ख्वाहिश को मन में लिए जी रहे व्यक्ति की  कहानी है पात्र, खंडहर हो चुके सामाजिक नैतिकता के भवन पर छत डालने की असफल कोशिश करता है परन्तु परिणाम वही 'ढाक के तीन पात'|
कैलाश वानखेडे की कहानी 'तुम लोग' का शिल्प ज़रा हैरान करता है, हजारों भाव जो पल पल बदल रहे हैं सबको तारतम्यता से प्रस्तुत कर देना सरल नहीं है, इन् हजारों ख्यालात के साथ साथ कहानी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ती रहती है यह भी लेखक की कुशलता का प्रतीक है जो सुन्दर भी है|
बदलाव (शरद उपाध्याय) समय के बदलाव, परिवेश के बदलाव और सोच के बदलाव की कहानी है और इन् सबसे ज्यादा खुद के बदलाव की कहानी है|


 दो लघुकथा 
गर्व (पंकज शर्मा) का कथ्य औसत है, परन्तु लघु कथा अपने शीर्षक को संप्रेषित कर पाने में असफल है| मर्दानगी (अशोक गुजराती), यदि लघु कथा का पहला बड़ा पैराग्राफ हटा दिया जाए तो लघुकथा सटीक और मारक है, एक बड़ा पैराग्राफ जो लघुकथा के लिहाज से बिलकुल फिजूल है, लघु कथा की सार्थकता को खत्म कर दे रहा है 


कविता, ग़ज़ल 
प्रस्तुत अंक में पाँच कवियों की कविता प्रकाशित की गई है (अजित कुमार, प्रत्यक्षा, मंजू मल्लिक मन्नु, नमिता सत्येन, विनीता जोशी 'वीनू') कविताएं स्तरीय हैं कवियों के साथ साथ संपादक मण्डल भी प्रशंसा के पात्र हैं 
कुमार नयन की तीन ग़ज़लें प्रकाशित की गई हैं, पहली व दूसरी ग़ज़ल बाबह्र है तथा कहन भी अच्छी है, ग़ज़लकार को बधाई| तीसरी ग़ज़ल ने निराश किया, ७ शेरों की इस ग़ज़ल में तीसरे शेर को छोड़ कर हर शेर बेबह्र है तथा  कथ्य में भी बिखराव है| यह सम्पादकीय कुशलता पर भी प्रश्न चिन्ह है
स्मृति शेष 
 इस स्तंभ में राजेन्द्र लहरिया और अरविन्द श्रीवास्तव ने 'कमला प्रसाद जी' को याद किया है व श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं, उमा शंकर चौधरी ने कविता के माध्यम से कमला जी को याद किया है, एक अंश प्रस्तुत है " तुम चले गए 
 तुम्हारी आवाज़ चली गई 
लेकिन तुम्हारा दिया नजरिया बहुत याद आएगा 
 इस दुनिया और इस दुनिया के लोगों को 
 प्यार करने की तुम्हारी चाहत बहुत याद आयेगी 
याद आयेगी -
 तुम्हारा दुःख, तुम्हारी हंसी, तुम्हारी आश्वस्ति 
 तुम्हारी आवाज,
 तुम्हारा मिलना 
 और कुल मिला कर 
पूरे के पूरे तुम "


अनन्त ने 'रेणु की लतिका' लेख से कथाकार 'रेणु' की धर्मपत्नी 'लतिका जी' को याद किया है व श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं 


अन्य
 पत्रिका में अन्य स्थाई स्तंभ भी रोचक व पठनीय हैं तथा अंक संग्रहणीय है 

प्रस्तुत समीक्षित अंक को आप पाखी की वेबसाईट पर भी (यहाँ क्लिक करकेपढ़ सकते हैं  


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मंगलवार, 31 मई 2011

वेब पत्रिका 'अभिव्यक्ति '-३० मई २०११

पत्रिका -           अभिव्यक्ति
अंक -              ३० मई 2011
स्वरूप -            साप्ताहिक(प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित)
संपादक -          पूर्णिमा वर्मन
मूल्य -             निःशुल्क(वेब पत्रिका)
ई मेल -           
teamabhi@abhivyakti-hindi.org
वेबसाईट           http://www.abhivyakti-hindi.org/



अभिव्यक्ति  का यह अंक वट सावित्री पर्व को ध्यान में रखकर प्रकाशित किया गया है 

पुष्पा तिवारी की कहानी "सावित्री का वट" नए शिल्प में लिखी गई कहानी है जो नारी अंतर्मन के ढेर सारे चित्र उकेरती है| लेखिका निश्चय ही  बधाई की पात्र हैं|

सावित्री झुरमुट की तलाश में इस कदर उलझ गई कि नदी तक नहीं पहुँच पाई। सूर्य किरण उसे न पाकर नदी से लौट गई थी। नदी लड़की में नहीं डूब जाने पर सिसकती रही। वह इसलिए सूखने भी लगी थी। सूर्य किरण लड़के के घर पहुँची। वह बाल्टी भर कुएँ के जल में एक और लड़की की नदी ढूंढ़ रहा था, सावित्री की नहीं। यह तलाश वह रात की बची हुई रोशनी की मदद से दिन में कर रहा था। किरण को रोज की तरह धूप के साथ सावित्री के घर जाना था। किरण और सावित्री दोनों के लिए धूप का घर नदी किनारे ही था।

रवींद्र खरे 'अकेला' की लघुकथा- "बरगद का दर्द" बरगद के प्रतीक के मध्याम से आधुनिक परिवारों में बंटवारे की त्रासदी को प्रस्तुत करती है| अमूमन अन्य लघुकथाओं के विपरीत इसका सकारात्मक अंत भी एक अच्छा प्रयास है|

डॉ. राजकुमार मलिक का आलेख "समय का समरूप बरगद" कई विशिष्ट तथ्यों के माध्यम से बरगद की विशालता, समय के साथ उसकी गतिशीलिता, धार्मिक महत्वों और अन्य लाभों का विश्लेषण करता है| एक पठनीय आलेख

पुनर्पाठ में कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख "क्रांतिकारी घटना का साक्षी वह बरगद" भी एक ऐतिहासिक क्रांतिकारी घटना को सबके समक्ष लाने का बेहतरीन प्रयास है|

कीर्तीश भट्ट का कार्टून भी गुदगुदाता है

अन्य  स्तंभों में नया व्यंजन, इला प्रवीण की शिशुचर्या का २२वाँ सप्ताह, अलका मिश्रा का आयुर्वेदिक सुझाव, कंप्यूटर की कक्षा में नई जानकारी- साथ में- वर्ग पहेली भी हैं|

सोमवार, 30 मई 2011

वेब पत्रिका 'अनुभूति '-३० मई २०११

पत्रिका -           अनुभूति
अंक -              ३० मई 2011
स्वरूप -            साप्ताहिक(प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित)
संपादक -          पूर्णिमा वर्मन
मूल्य -             निःशुल्क(वेब पत्रिका)
ई मेल -            teamanu@anubhuti-hindi.org
वेबसाईट           http://www.anubhuti-hindi.org/


अनुभूति के इस अंक में इसी समूह द्वारा चलाई जाने वाली "नवगीत की पाठशाला" की पिछली कार्यशाला से कुछ चुनिन्दा गीत प्रकाशित किये गए हैं| 
कुमार रवींद्र, यश मालवीय, भारतेंदु मिश्र, जय कृष्ण राय तुषार, अमित, वीनस केशरी, ओम प्रकाश तिवारी, संजीव सलिल, रचना श्रीवास्तव, प्रभु दयाल, धर्मेन्द्र कुमार सिंह,  अवनीश सिंह चौहान, रूप चंद्र शास्त्री 'मयंक', राणा प्रताप सिंह, शेषधर तिवारी और नियति वर्मा के कुल मिलाकर १८ गीत हैं| अधिकतर गीतों में मानवीय संवेदनाओं और समकालीन विसंगतियों को ही विषय से जोड़ने का  प्रयास किया गया है| एक ही विषय पर अलग अलग गीतकारों की रचनाएँ प्रस्तुत करना एक उपलब्धि है| चुने गए सभी गीत स्तरीय हैं नवगीतकारों को बधाई |

अंजुमन  में दिनेश ठाकुर की चार ग़ज़लें शामिल हैं, कुछ शेर प्रस्तुत हैं -



भीड़ में खोया हुआ है आदमी
भीड़ से निकला सिकन्‍दर हो गया
 *                  *                *
आह भरते हैं मगर आहट नहीं होती
मन से मन की दूरियों में आदमी खोया
   *                  *                *
दब रहे आतंक में सब लोग इस्‍पंजी बने
कैसे कह दें रहनुमा हालात से अनजान है


चारों गज़लें कथ्य की दृष्टि से उत्तम हैं और अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम हैं| ग़ज़लें एक दो जगह मीटर से बाहर भी चली गई हैं|  

छन्दमुक्त में डा० हरदीप संधु की पांच कवितायें हैं| सरल शब्दों में लिखी गई कवितायें अच्छी बन पडी हैं, एक बानगी देखिये -


 जब दिल करता 
हँसना-गाना 
मौज मनाना 
कभी -कभी रो देना 
याद आता है 
आज फिर वही
वो तुतलाता बचपन 
वो बेफ़िक्री
वो भोलापन !




साथ ही साथ हाइकु कविता का प्रयोग भी बहुत सुन्दर है|

इसके अतिरिक्त डा० वन्दना मुकेश की पांच क्षणिकाएं भी इस अंक की शोभा बढ़ा रही हैं|

पुनर्पाठ में सुरेश यादव जी की रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है|
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मंगलवार, 24 मई 2011

समीक्षा - नया ज्ञानोदय, मई २०११

पत्रिका -           नया ज्ञानोदय 
अंक -              मई 2011
स्वरूप -            मासिक 
संपादक -          रवीन्द्र कालिया
मूल्य -             (यह विषेशांक - 50 रू) (सामान्य अंक - 30 रू) (वार्षिक 300रू.)
फोन/मोबाईल:    011.24626467
ई मेल -            jnanpith@satyam.net.in
वेबसाईट           http://www.jnanpith.net/
पत्राचार :          18, इन्स्टीट्यूटनल एरिया, लोदी रोड़, नई दिल्ली 11000

यह अंक लम्बी कहानियों और लम्बी कविताओं का विषेशांक है जिसमें ९ कहानियां और ३ कविताएँ हैं साथ ही प्रमुख स्थाई स्तंभ |

रश्मि रेखा में जानकी वल्लभ शास्त्री जी को याद करते हुए भाव-भीनी श्रद्धांजली  अर्पित की है

गुलज़ार ने  अपने स्तंभ 'मेरे अपने'  में अपने हमनाम गोरख पांडे (गोरे) को याद किया है


लम्बी कविताओं में प्रकाश शुक्ल की कविता 'अडीबाज़' प्रभावित करती है कुछ पंक्तियाँ देखें -
मूल्य इनके लिए तयशुदा माल नहीं है,
बल्कि यह नकार कि उन सभी संभावनाओं में दर्ज है
जिसे सुनकर पहली बार दुनिया को झटका लगता है 
यूं झटका देना इनकी नियति है 
और हर चीज को झटक कर चल देना इनकी गति 

अपने स्तंभ 'अनंतिम' में विजय मोहन सिंह शुरुआत अपने पूर्व प्रकाशित लेखों पर सफाई देते हुए की है, और आगे उन्होंने दो कहानियों कि सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत कि है

अजय वर्मा 'आकलन' स्तंभ  के अंतर्गत युवा रचनाशीलता के विचारों को प्रस्तुत करते हैं, शुरुआत में वो कहते हैं -
                                                " नए कथाकारों में हम संभावनाए देख कर बातें करते रहे हैं पर अब मूल्यांकन की जरूरत महसूस होने लगी है क्योकि आज के तीव्र गति से बदलते समय में संभावना और मूल्यांकन के बीच का अंतराल भी कम हो गया है"

और मध्य में कहते हैं -
                                    "कथाकार का काम सिर्फ टूटते बिखरते जीवन का डाटा इकठ्ठा करना नहीं है उपदेश देना या निदान देना भी उसका काम नहीं है, पर उसके प्रति उसका रुख स्पष्ट होना चाहिए"

जिस विविधता के साथ अजय वर्मा ने शुरुआत की है अंत उतना रोचक नहीं बन सका है, लेखक ने लेख को कतिपय केन्द्रीय कर दिया है, एक व्यक्ति विशेष पर चर्चा केंद्रित हो गई है परिणाम स्वरूप कई नाम जिनका उल्लेख किया जा सकता था छूट गए, विचार सटीक और विश्लेषण समयानुकूल है, बधाई

ज्ञान चतुर्वेदी के स्थाई स्तंभ 'प्रत्यंचा' के व्यंग की धार हमेशा कि तरह तीखी है जो सब कुछ काटती हुई सांय से गुजर जाती है


कहानियाँ -
जिस कहानी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया और जिस कहानी की वजह से यह अंक विशेष हो जाता है वह है अखिलेश कि 'श्रृंखला', कहानी समकालीन भारतीय जनता और राजनीतिक मनः स्थिति को व्यक्त करती है
अखिलेश को साधुवाद

  'श्रृंखला' कहानी पर अजय तिवारी का आलेख सामाजिक राजनीतिक ढाँचे की विस्तृत जांच पड़ताल करता है

उमा शंकर चौधरी की कहानी 'मिसेज़ वाटसन की भुतहा कोठी' में छठी पीढ़ी तक मिले अभिशाप को पांचवी पीढ़ी को तोडना ही पड़ता है क्योकि जीवन उतना सरल नहीं रह जाता, कि कठिनाई के साथ जिया जा सके

श्रीकान्त दूबे की 'गुरत्वाकर्षण'  रिश्तों की उठापटक के बीच मौन को जीने की कहानी है जहाँ मौन का सब कुछ खोता हुआ प्रतीत होता है और मौन कुछ नहीं कह सकता क्योकि उसकी नियति ही मौन रहना है | लेखक बधाई का पात्र है

अन्य कहानियों में चौथी, पांचवी और छठी कसम (पंकज सुबीर), दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे (कुणाल सिंह) भी अपना प्रभाव छोडने में सक्षम हैं, दोनों कहानीकारों ने कतिपय नए विषय पर कलम चलाई है

आज रंग है (वन्दना राग), पवित्र सिर्फ एक शब्द है (विमल चंद्र पाण्डेय), कहीं कुछ नहीं(शशि भूषण द्विवेदी) यह कहानियां भी अच्छी बन पडी हैं|

गौरव सोलंकी कि कहानी 'ग्यारहवीं ए के लड़के' ने काफी निराश किया, अमूमन गौरव सोलंकी की कहानी स्तरीय होती है
इस कहानी से पत्रिका के संपादक महोदय भी नाखुश दिखे, क्योकि कालिया जी ने सम्पादकीय में इस कहानी के सन्दर्भ में कहा है -
                       
                                  "गौरव सोलंकी जिस राह पर चल पड़े हैं उस राह पर आगे यही पट्टिका है  -  'सावधान आगे खाई है'"



गुरुवार, 19 मई 2011

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