शनिवार, 23 जुलाई 2011

त्रैमासिक 'संबोधन'-अप्रैल-जून २०११

पत्रिका -            संबोधन
अंक -              अप्रैल-जून  2011
स्वरूप -            त्रैमासिक
संपादक -          क़मर मेवाडी
मूल्य -             (२०रू प्रति, तीन वर्ष के लिए २५०/-)
फोन/मोबाईल:    ०२९५२-२२३२२१, ९८२९१६१३४२
ई मेल -            qamar.mewari@rediffmail.com
वेबसाईट           
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पत्राचार :         
पोस्ट-कांकरोली-३१३३२४ जिला-राजसमन्द, राजस्थान



संबोधन के इस अंक में विशिष्ट कवि चन्द्र प्रकाश देवल की सात कवितायें प्रकाशित की गई हैं| सभी कवितायें अलग अलग विषयों पर कवि की परख को बखूबी उजागर करती हैं| 

विष्णु चन्द्र शर्मा का लेख आप जो कहिये वह बाज़ार से ला देता हूँ मैं समकालीन साहित्य पर हावी होते बाजारवाद को ही परिभाषित करता है| एक पठनीय लेख|

महावीर रवाल्टा से विद्यासागर नौटियाल की बातचीत में कई रोचक सवाल जवाब सामने आते हैं| और महावीर जी ने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया है|

राम निहाल गुंजन का आलेख नन्द चतुर्वेदी की काव्य दृष्टि और विचार नन्द चतुर्वेदी के साहित्य को और उनके व्यक्तित्व को समझाने में सफल रहा है|

सुशांत सुप्रिय की सात कवितायें बदलते मूल्यों और सामजिक ढांचे में हो रहे बदलाव की ही व्याख्या करती हैं| सभी कवितायें अच्छी हैं|


विनीता जोशी, मीरा पुरवार, और नीना जैन की भी कवितायें प्रभावित करती हैं|

हबीब कैफी की कहानी ढाणी में प्रकाश आज भी जीवित भारतीय संस्कृति और व्यक्तित्व की मिसाल कायम करती है| शुरू से लेकर अंत तक पाठक को बांधे रखने में सक्षम है| रवि बुले ने कहानी की बहुत सुन्दर समीक्षा भी की है|

ग़ज़लों में मुनव्वर अली ताज, रामकुमार सिंह, नलिनी विभा 'नाज़ली' और सुरेश उजाला की गज़लें शामिल हैं| समकालीन ग़ज़लों की तरह इनके भी विषय रवायती ग़ज़लों से इतर हैं| शिल्प की कुछ खामियों को छोड़ दें तो सभी गज़लें सुन्दर हैं|

वेद व्यास का लेख राजस्थान में २०१० का साहित्य राजस्थान में साहित्य में हो रही गतिविधियों की जांच पड़ताल करता है

इनके अतिरिक्त समीक्षा, संस्मरण और पत्र भी प्रकाशित किये गए हैं|

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

साहित्य का संगम : दिव्यालोक अंक १५

पत्रिका -            दिव्यालोक
अंक -               2011
स्वरूप -             अर्ध वार्षिक
संपादक -          जगदीश किंजल्क
मूल्य -             (60 रू प्रति)
फोन/मोबाईल:    09977782777, 0755-2494777
ई मेल -            jadgishkinjalk@gmail.com
वेबसाईट           
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पत्राचार :          
साहित्य सदन, प्लाट नंबर - 145 A सांई नाथ नगर, सी सेक्टर, कोलार             भोपाल - 462042





जगदीश किंजल्क ने सम्पादकीय में साहित्य, साहित्यकार व समाज की वर्तमान स्थिति पर विचार किया है आप लिखते हैं - 


कुछ राज्य सरकारों द्वारा साहित्यिक पत्रिकाएँ क्रय की जाती थी, सरकार को लगा यह फिजूल खर्ची है तुरंत बंद होना चाहिए... और बंद हो गयी| पक्ष विपक्ष ने सर्व सम्मति से इस निर्णय का स्वागत किया ...


लेख खंड में 'कौन कौन ग्रन्थ पढ़े होंगे तुलसीदास ने' (अम्बिका प्रसाद दिव्य) विशेष पठनीय, ज्ञान परक व विचार परक है


गीत खंड में शिवानंद सिंह 'सहयोगी', विजय लक्ष्मी 'विभा'चंद्रसेन 'विराट'  के गीत विशेष प्रभावशाली हैं विराट जी ने अपने गीत को किस मोहक ढंग से अलंकृत किया है -


मैं अपने मैं का दास रहा 
वह खुश तो मैं खुश 
उसके दुःख से मैं दुखी, उदास रहा 
वह दम्भी अभिमानी अशिष्ट 
अकरुण कठोरता का विग्रह 
मैं अति विनम्र, आज्ञाकारी 
अति सदाशयी सेवक निस्पृह 
वह तो अघोर अति शासक अति 
अनूदित अविरल अनुप्रास रहा |


 कहानी खंड में तीन कहानियों 'मोहजाल' (प्रतिभा जौहरी), 'आस्था' (सतीश दूबे), 'बीतता पल' (राधे मोहन राय) में मानव मन की उलझनों को बखूबी सुलझाने का प्रयत्न किया गया है, कुछ जगह सुलझी भी है और कुछ उलझन और उलझने को आतुर दिखीं 'मोह जाल' का प्लाट थोडा पुराना है परन्तु कहानीकार ने कहानी को अच्छे से निभा लिया है 


नवगीत खंड में काफी कुछ नयापन है मगर साथ साथ एक कच्चापन भी साथ साथ चलता रहा, आशा है आगे चल कर यह खंड और सार्थकता लिए हुए होगा 


व्यंग्य खंड अपनी सार्थकता का सुरुचिपूर्ण बोध करवाता है, अजय चतुर्वेदी 'कक्का', अजीत श्रीवास्तव, राधे मोहन राय के व्यंग्य लेख प्रभावशाली हैं 


ग़ज़ल खंड में महेश अग्रवाल, डा.दरवेश भारती, विजयलक्ष्मी 'विभा' की ग़ज़लें मन को प्रमुदित करती हैं 


खाब अपने कांच के घर हो गए |
और उनके फूल पत्थर हो गए |

हम नदी की फ़िक्र में बैठे रहे, 
लोग पल भर में समंदर हो गए |

- महेश अग्रवाल  


कुछ ग़ज़लें लय से भटक रही हैं सम्पादक दल को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए 


अशोक गुजराती की लघु कथा 'चित-पट' स्तरीय है 


समीक्षा खंड भी पत्रिका के साहित्य को स्तरीयता प्रदान करता है व पत्रिका को समृद्ध करता है


पत्रिका पठनीय है व् अनेक विधाओं को समेटे हुए है 


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'समीक्षा ब्लॉग समूह' के पाठकों के लिए दिव्यालोक पत्रिका की सदस्यता की राशि में १० प्रतिशत की विशेष छूट मिलेगी व् उपहार स्वरूप २०० रु मूल्य की साहित्यिक पुस्तकें उपहार स्वरूप दी जायेगी
(छूट व उपहार पाने के लिए पत्रिका के सम्पादकीय विभाग से संपर्क करें व समीक्षा ब्लॉग समूह का उल्लेख जरूर करें)
- जगदीश किंजल्क
संपादक : दिव्यालोक