मंगलवार, 31 मई 2011

वेब पत्रिका 'अभिव्यक्ति '-३० मई २०११

पत्रिका -           अभिव्यक्ति
अंक -              ३० मई 2011
स्वरूप -            साप्ताहिक(प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित)
संपादक -          पूर्णिमा वर्मन
मूल्य -             निःशुल्क(वेब पत्रिका)
ई मेल -           
teamabhi@abhivyakti-hindi.org
वेबसाईट           http://www.abhivyakti-hindi.org/



अभिव्यक्ति  का यह अंक वट सावित्री पर्व को ध्यान में रखकर प्रकाशित किया गया है 

पुष्पा तिवारी की कहानी "सावित्री का वट" नए शिल्प में लिखी गई कहानी है जो नारी अंतर्मन के ढेर सारे चित्र उकेरती है| लेखिका निश्चय ही  बधाई की पात्र हैं|

सावित्री झुरमुट की तलाश में इस कदर उलझ गई कि नदी तक नहीं पहुँच पाई। सूर्य किरण उसे न पाकर नदी से लौट गई थी। नदी लड़की में नहीं डूब जाने पर सिसकती रही। वह इसलिए सूखने भी लगी थी। सूर्य किरण लड़के के घर पहुँची। वह बाल्टी भर कुएँ के जल में एक और लड़की की नदी ढूंढ़ रहा था, सावित्री की नहीं। यह तलाश वह रात की बची हुई रोशनी की मदद से दिन में कर रहा था। किरण को रोज की तरह धूप के साथ सावित्री के घर जाना था। किरण और सावित्री दोनों के लिए धूप का घर नदी किनारे ही था।

रवींद्र खरे 'अकेला' की लघुकथा- "बरगद का दर्द" बरगद के प्रतीक के मध्याम से आधुनिक परिवारों में बंटवारे की त्रासदी को प्रस्तुत करती है| अमूमन अन्य लघुकथाओं के विपरीत इसका सकारात्मक अंत भी एक अच्छा प्रयास है|

डॉ. राजकुमार मलिक का आलेख "समय का समरूप बरगद" कई विशिष्ट तथ्यों के माध्यम से बरगद की विशालता, समय के साथ उसकी गतिशीलिता, धार्मिक महत्वों और अन्य लाभों का विश्लेषण करता है| एक पठनीय आलेख

पुनर्पाठ में कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख "क्रांतिकारी घटना का साक्षी वह बरगद" भी एक ऐतिहासिक क्रांतिकारी घटना को सबके समक्ष लाने का बेहतरीन प्रयास है|

कीर्तीश भट्ट का कार्टून भी गुदगुदाता है

अन्य  स्तंभों में नया व्यंजन, इला प्रवीण की शिशुचर्या का २२वाँ सप्ताह, अलका मिश्रा का आयुर्वेदिक सुझाव, कंप्यूटर की कक्षा में नई जानकारी- साथ में- वर्ग पहेली भी हैं|

सोमवार, 30 मई 2011

वेब पत्रिका 'अनुभूति '-३० मई २०११

पत्रिका -           अनुभूति
अंक -              ३० मई 2011
स्वरूप -            साप्ताहिक(प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित)
संपादक -          पूर्णिमा वर्मन
मूल्य -             निःशुल्क(वेब पत्रिका)
ई मेल -            teamanu@anubhuti-hindi.org
वेबसाईट           http://www.anubhuti-hindi.org/


अनुभूति के इस अंक में इसी समूह द्वारा चलाई जाने वाली "नवगीत की पाठशाला" की पिछली कार्यशाला से कुछ चुनिन्दा गीत प्रकाशित किये गए हैं| 
कुमार रवींद्र, यश मालवीय, भारतेंदु मिश्र, जय कृष्ण राय तुषार, अमित, वीनस केशरी, ओम प्रकाश तिवारी, संजीव सलिल, रचना श्रीवास्तव, प्रभु दयाल, धर्मेन्द्र कुमार सिंह,  अवनीश सिंह चौहान, रूप चंद्र शास्त्री 'मयंक', राणा प्रताप सिंह, शेषधर तिवारी और नियति वर्मा के कुल मिलाकर १८ गीत हैं| अधिकतर गीतों में मानवीय संवेदनाओं और समकालीन विसंगतियों को ही विषय से जोड़ने का  प्रयास किया गया है| एक ही विषय पर अलग अलग गीतकारों की रचनाएँ प्रस्तुत करना एक उपलब्धि है| चुने गए सभी गीत स्तरीय हैं नवगीतकारों को बधाई |

अंजुमन  में दिनेश ठाकुर की चार ग़ज़लें शामिल हैं, कुछ शेर प्रस्तुत हैं -



भीड़ में खोया हुआ है आदमी
भीड़ से निकला सिकन्‍दर हो गया
 *                  *                *
आह भरते हैं मगर आहट नहीं होती
मन से मन की दूरियों में आदमी खोया
   *                  *                *
दब रहे आतंक में सब लोग इस्‍पंजी बने
कैसे कह दें रहनुमा हालात से अनजान है


चारों गज़लें कथ्य की दृष्टि से उत्तम हैं और अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम हैं| ग़ज़लें एक दो जगह मीटर से बाहर भी चली गई हैं|  

छन्दमुक्त में डा० हरदीप संधु की पांच कवितायें हैं| सरल शब्दों में लिखी गई कवितायें अच्छी बन पडी हैं, एक बानगी देखिये -


 जब दिल करता 
हँसना-गाना 
मौज मनाना 
कभी -कभी रो देना 
याद आता है 
आज फिर वही
वो तुतलाता बचपन 
वो बेफ़िक्री
वो भोलापन !




साथ ही साथ हाइकु कविता का प्रयोग भी बहुत सुन्दर है|

इसके अतिरिक्त डा० वन्दना मुकेश की पांच क्षणिकाएं भी इस अंक की शोभा बढ़ा रही हैं|

पुनर्पाठ में सुरेश यादव जी की रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है|
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मंगलवार, 24 मई 2011

समीक्षा - नया ज्ञानोदय, मई २०११

पत्रिका -           नया ज्ञानोदय 
अंक -              मई 2011
स्वरूप -            मासिक 
संपादक -          रवीन्द्र कालिया
मूल्य -             (यह विषेशांक - 50 रू) (सामान्य अंक - 30 रू) (वार्षिक 300रू.)
फोन/मोबाईल:    011.24626467
ई मेल -            jnanpith@satyam.net.in
वेबसाईट           http://www.jnanpith.net/
पत्राचार :          18, इन्स्टीट्यूटनल एरिया, लोदी रोड़, नई दिल्ली 11000

यह अंक लम्बी कहानियों और लम्बी कविताओं का विषेशांक है जिसमें ९ कहानियां और ३ कविताएँ हैं साथ ही प्रमुख स्थाई स्तंभ |

रश्मि रेखा में जानकी वल्लभ शास्त्री जी को याद करते हुए भाव-भीनी श्रद्धांजली  अर्पित की है

गुलज़ार ने  अपने स्तंभ 'मेरे अपने'  में अपने हमनाम गोरख पांडे (गोरे) को याद किया है


लम्बी कविताओं में प्रकाश शुक्ल की कविता 'अडीबाज़' प्रभावित करती है कुछ पंक्तियाँ देखें -
मूल्य इनके लिए तयशुदा माल नहीं है,
बल्कि यह नकार कि उन सभी संभावनाओं में दर्ज है
जिसे सुनकर पहली बार दुनिया को झटका लगता है 
यूं झटका देना इनकी नियति है 
और हर चीज को झटक कर चल देना इनकी गति 

अपने स्तंभ 'अनंतिम' में विजय मोहन सिंह शुरुआत अपने पूर्व प्रकाशित लेखों पर सफाई देते हुए की है, और आगे उन्होंने दो कहानियों कि सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत कि है

अजय वर्मा 'आकलन' स्तंभ  के अंतर्गत युवा रचनाशीलता के विचारों को प्रस्तुत करते हैं, शुरुआत में वो कहते हैं -
                                                " नए कथाकारों में हम संभावनाए देख कर बातें करते रहे हैं पर अब मूल्यांकन की जरूरत महसूस होने लगी है क्योकि आज के तीव्र गति से बदलते समय में संभावना और मूल्यांकन के बीच का अंतराल भी कम हो गया है"

और मध्य में कहते हैं -
                                    "कथाकार का काम सिर्फ टूटते बिखरते जीवन का डाटा इकठ्ठा करना नहीं है उपदेश देना या निदान देना भी उसका काम नहीं है, पर उसके प्रति उसका रुख स्पष्ट होना चाहिए"

जिस विविधता के साथ अजय वर्मा ने शुरुआत की है अंत उतना रोचक नहीं बन सका है, लेखक ने लेख को कतिपय केन्द्रीय कर दिया है, एक व्यक्ति विशेष पर चर्चा केंद्रित हो गई है परिणाम स्वरूप कई नाम जिनका उल्लेख किया जा सकता था छूट गए, विचार सटीक और विश्लेषण समयानुकूल है, बधाई

ज्ञान चतुर्वेदी के स्थाई स्तंभ 'प्रत्यंचा' के व्यंग की धार हमेशा कि तरह तीखी है जो सब कुछ काटती हुई सांय से गुजर जाती है


कहानियाँ -
जिस कहानी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया और जिस कहानी की वजह से यह अंक विशेष हो जाता है वह है अखिलेश कि 'श्रृंखला', कहानी समकालीन भारतीय जनता और राजनीतिक मनः स्थिति को व्यक्त करती है
अखिलेश को साधुवाद

  'श्रृंखला' कहानी पर अजय तिवारी का आलेख सामाजिक राजनीतिक ढाँचे की विस्तृत जांच पड़ताल करता है

उमा शंकर चौधरी की कहानी 'मिसेज़ वाटसन की भुतहा कोठी' में छठी पीढ़ी तक मिले अभिशाप को पांचवी पीढ़ी को तोडना ही पड़ता है क्योकि जीवन उतना सरल नहीं रह जाता, कि कठिनाई के साथ जिया जा सके

श्रीकान्त दूबे की 'गुरत्वाकर्षण'  रिश्तों की उठापटक के बीच मौन को जीने की कहानी है जहाँ मौन का सब कुछ खोता हुआ प्रतीत होता है और मौन कुछ नहीं कह सकता क्योकि उसकी नियति ही मौन रहना है | लेखक बधाई का पात्र है

अन्य कहानियों में चौथी, पांचवी और छठी कसम (पंकज सुबीर), दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे (कुणाल सिंह) भी अपना प्रभाव छोडने में सक्षम हैं, दोनों कहानीकारों ने कतिपय नए विषय पर कलम चलाई है

आज रंग है (वन्दना राग), पवित्र सिर्फ एक शब्द है (विमल चंद्र पाण्डेय), कहीं कुछ नहीं(शशि भूषण द्विवेदी) यह कहानियां भी अच्छी बन पडी हैं|

गौरव सोलंकी कि कहानी 'ग्यारहवीं ए के लड़के' ने काफी निराश किया, अमूमन गौरव सोलंकी की कहानी स्तरीय होती है
इस कहानी से पत्रिका के संपादक महोदय भी नाखुश दिखे, क्योकि कालिया जी ने सम्पादकीय में इस कहानी के सन्दर्भ में कहा है -
                       
                                  "गौरव सोलंकी जिस राह पर चल पड़े हैं उस राह पर आगे यही पट्टिका है  -  'सावधान आगे खाई है'"



गुरुवार, 19 मई 2011

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