गुरुवार, 2 जून 2011

समीक्षा - पाखी, मई २०११

अंक -              मई 2011
स्वरूप -            मासिक
संपादक -          प्रेम भारद्वाज
मूल्य -             (20 रू प्रति) (वार्षिक 240 रू.)
फोन/मोबाईल:    0120- 4070300, 4070398
ई मेल -            pakhi@pakhi.in
वेबसाईट           http://www.pakhi.in
पत्राचार :          
इंडिपेडेंट मीडिया इनिशियेटिव सोसायटी, बी 107, सेक्टर 63, नोएड़ा,
 201303 उ.प्र.


प्रतिष्ठित पत्रिका 'पाखी' का यह विशेषांक विविध रचनाओं तथा अन्य रोचक स्तंभों  सुसज्जित है 


पाँच कहानियाँ 
कोसे का साफा, दुधारी छूरी (अब्दुल बिस्मिल्ल्ह) कहानी व्यूह रचना करते हुए आगे बढती है और कुछ यक्ष प्रश्नों के साथ समाप्त होती है, लेखक कि अपनी शैली है जो काबिले तारीफ़ भी है और यह आशा भी की जा सकती है कि भविष्य में इसमें और निखार आएगा| 
पाँव में पहिये वाली लड़की (संतोष दीक्षित) कहानी में विषय का बखूबी निर्वहन किया गया है, लेखक बधाई का पात्र है| कहानी, मुख्य पात्र पुनिया की है जो पुनिया से पूर्णिमा बनने की जद्दोजहद में सामाजिक संघर्ष को एक विराम दिला देती है| पूर्णिमा बनने का सफर शुरू हो चुका है, एक अंश देखें -
                                      "जितनी मुँह उतनी बातें। लड़के पफब्तियां कसते। अंड बंड बकते। लेकिन कोई पफर्क नहीं पड़ता पुनिया को। चाय दुकान का उसका अनुभव इस बुरे वक्त में उसके खूब काम आता। वह अपना काम निबटाती और पिफर अपनी किताबों में खो जाती। वैसे भी इन सड़क छाप मजनुओं के साथ न उसका कोई भविष्य था न ही उसका कोई सपना इनके भविष्य के साथ मेल खाता था। जो वह आगे बढ़ती  ही... लगातार... अपनी सायकिल की रफ्तार से..."
कहानी अवश्य पढ़े|
'वह चेहरा' (रूप सिंह चंदेल) जिंदगी के पासे में हमेशा ६ लाने की जुगत करने वालों को १ और २ का महत्त्व भी मालूम होना चाहिए, अपनी जीवन उपलब्धि को एक खास इंसान  से साझा करने की ख्वाहिश को मन में लिए जी रहे व्यक्ति की  कहानी है पात्र, खंडहर हो चुके सामाजिक नैतिकता के भवन पर छत डालने की असफल कोशिश करता है परन्तु परिणाम वही 'ढाक के तीन पात'|
कैलाश वानखेडे की कहानी 'तुम लोग' का शिल्प ज़रा हैरान करता है, हजारों भाव जो पल पल बदल रहे हैं सबको तारतम्यता से प्रस्तुत कर देना सरल नहीं है, इन् हजारों ख्यालात के साथ साथ कहानी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ती रहती है यह भी लेखक की कुशलता का प्रतीक है जो सुन्दर भी है|
बदलाव (शरद उपाध्याय) समय के बदलाव, परिवेश के बदलाव और सोच के बदलाव की कहानी है और इन् सबसे ज्यादा खुद के बदलाव की कहानी है|


 दो लघुकथा 
गर्व (पंकज शर्मा) का कथ्य औसत है, परन्तु लघु कथा अपने शीर्षक को संप्रेषित कर पाने में असफल है| मर्दानगी (अशोक गुजराती), यदि लघु कथा का पहला बड़ा पैराग्राफ हटा दिया जाए तो लघुकथा सटीक और मारक है, एक बड़ा पैराग्राफ जो लघुकथा के लिहाज से बिलकुल फिजूल है, लघु कथा की सार्थकता को खत्म कर दे रहा है 


कविता, ग़ज़ल 
प्रस्तुत अंक में पाँच कवियों की कविता प्रकाशित की गई है (अजित कुमार, प्रत्यक्षा, मंजू मल्लिक मन्नु, नमिता सत्येन, विनीता जोशी 'वीनू') कविताएं स्तरीय हैं कवियों के साथ साथ संपादक मण्डल भी प्रशंसा के पात्र हैं 
कुमार नयन की तीन ग़ज़लें प्रकाशित की गई हैं, पहली व दूसरी ग़ज़ल बाबह्र है तथा कहन भी अच्छी है, ग़ज़लकार को बधाई| तीसरी ग़ज़ल ने निराश किया, ७ शेरों की इस ग़ज़ल में तीसरे शेर को छोड़ कर हर शेर बेबह्र है तथा  कथ्य में भी बिखराव है| यह सम्पादकीय कुशलता पर भी प्रश्न चिन्ह है
स्मृति शेष 
 इस स्तंभ में राजेन्द्र लहरिया और अरविन्द श्रीवास्तव ने 'कमला प्रसाद जी' को याद किया है व श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं, उमा शंकर चौधरी ने कविता के माध्यम से कमला जी को याद किया है, एक अंश प्रस्तुत है " तुम चले गए 
 तुम्हारी आवाज़ चली गई 
लेकिन तुम्हारा दिया नजरिया बहुत याद आएगा 
 इस दुनिया और इस दुनिया के लोगों को 
 प्यार करने की तुम्हारी चाहत बहुत याद आयेगी 
याद आयेगी -
 तुम्हारा दुःख, तुम्हारी हंसी, तुम्हारी आश्वस्ति 
 तुम्हारी आवाज,
 तुम्हारा मिलना 
 और कुल मिला कर 
पूरे के पूरे तुम "


अनन्त ने 'रेणु की लतिका' लेख से कथाकार 'रेणु' की धर्मपत्नी 'लतिका जी' को याद किया है व श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं 


अन्य
 पत्रिका में अन्य स्थाई स्तंभ भी रोचक व पठनीय हैं तथा अंक संग्रहणीय है 

प्रस्तुत समीक्षित अंक को आप पाखी की वेबसाईट पर भी (यहाँ क्लिक करकेपढ़ सकते हैं  


(नई पोस्ट की नियमित सूचना प्राप्त करने के लिए ब्लॉग के फालोवर बनें अथवा ई मेल सबक्राईब करें)

1 टिप्पणी: