पत्रिका - संबोधन
अंक - अप्रैल-जून 2011
स्वरूप - त्रैमासिक
संपादक - क़मर मेवाडी
मूल्य - (२०रू प्रति, तीन वर्ष के लिए २५०/-)
फोन/मोबाईल: ०२९५२-२२३२२१, ९८२९१६१३४२
ई मेल - qamar.mewari@rediffmail.com
वेबसाईट ------
पत्राचार : पोस्ट-कांकरोली-३१३३२४ जिला-राजसमन्द, राजस्थान
संबोधन के इस अंक में विशिष्ट कवि चन्द्र प्रकाश देवल की सात कवितायें प्रकाशित की गई हैं| सभी कवितायें अलग अलग विषयों पर कवि की परख को बखूबी उजागर करती हैं|
विष्णु चन्द्र शर्मा का लेख आप जो कहिये वह बाज़ार से ला देता हूँ मैं समकालीन साहित्य पर हावी होते बाजारवाद को ही परिभाषित करता है| एक पठनीय लेख|
महावीर रवाल्टा से विद्यासागर नौटियाल की बातचीत में कई रोचक सवाल जवाब सामने आते हैं| और महावीर जी ने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया है|
राम निहाल गुंजन का आलेख नन्द चतुर्वेदी की काव्य दृष्टि और विचार नन्द चतुर्वेदी के साहित्य को और उनके व्यक्तित्व को समझाने में सफल रहा है|
सुशांत सुप्रिय की सात कवितायें बदलते मूल्यों और सामजिक ढांचे में हो रहे बदलाव की ही व्याख्या करती हैं| सभी कवितायें अच्छी हैं|
विनीता जोशी, मीरा पुरवार, और नीना जैन की भी कवितायें प्रभावित करती हैं|
इनके अतिरिक्त समीक्षा, संस्मरण और पत्र भी प्रकाशित किये गए हैं|
अंक - अप्रैल-जून 2011
स्वरूप - त्रैमासिक
संपादक - क़मर मेवाडी
मूल्य - (२०रू प्रति, तीन वर्ष के लिए २५०/-)
फोन/मोबाईल: ०२९५२-२२३२२१, ९८२९१६१३४२
ई मेल - qamar.mewari@rediffmail.com
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संबोधन के इस अंक में विशिष्ट कवि चन्द्र प्रकाश देवल की सात कवितायें प्रकाशित की गई हैं| सभी कवितायें अलग अलग विषयों पर कवि की परख को बखूबी उजागर करती हैं|
विष्णु चन्द्र शर्मा का लेख आप जो कहिये वह बाज़ार से ला देता हूँ मैं समकालीन साहित्य पर हावी होते बाजारवाद को ही परिभाषित करता है| एक पठनीय लेख|
महावीर रवाल्टा से विद्यासागर नौटियाल की बातचीत में कई रोचक सवाल जवाब सामने आते हैं| और महावीर जी ने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया है|
राम निहाल गुंजन का आलेख नन्द चतुर्वेदी की काव्य दृष्टि और विचार नन्द चतुर्वेदी के साहित्य को और उनके व्यक्तित्व को समझाने में सफल रहा है|
सुशांत सुप्रिय की सात कवितायें बदलते मूल्यों और सामजिक ढांचे में हो रहे बदलाव की ही व्याख्या करती हैं| सभी कवितायें अच्छी हैं|
विनीता जोशी, मीरा पुरवार, और नीना जैन की भी कवितायें प्रभावित करती हैं|
हबीब कैफी की कहानी ढाणी में प्रकाश आज भी जीवित भारतीय संस्कृति और व्यक्तित्व की मिसाल कायम करती है| शुरू से लेकर अंत तक पाठक को बांधे रखने में सक्षम है| रवि बुले ने कहानी की बहुत सुन्दर समीक्षा भी की है|
ग़ज़लों में मुनव्वर अली ताज, रामकुमार सिंह, नलिनी विभा 'नाज़ली' और सुरेश उजाला की गज़लें शामिल हैं| समकालीन ग़ज़लों की तरह इनके भी विषय रवायती ग़ज़लों से इतर हैं| शिल्प की कुछ खामियों को छोड़ दें तो सभी गज़लें सुन्दर हैं|
वेद व्यास का लेख राजस्थान में २०१० का साहित्य राजस्थान में साहित्य में हो रही गतिविधियों की जांच पड़ताल करता है